जाति हीं पूछो साधु की!
अंजन कुमार ठाकुर
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Geisteswissenschaften, Kunst, Musik / Philosophie
Beschreibung
About the book:
ये किताब दरअसल आधुनिक भारतीय समाज में जाति की भ्रान्तिपूर्ण अवधारणा की उस स्थापना के विरुद्ध है जो भारतीय नव-अंग्रेज़ों के द्वारा थोप दिया गया है। लेखक के मतानुसार जाति व्यवस्था वास्तव में हर समाज का कर्म के अनुसार गठित एक पेशेवर समायोजन है। हर रोजगार देने वाली व्यवस्था हायरार्किअल छुआछूत ग्रस्त तो होती हीं हैं। हर आफ़िस में साहेब , अधीनस्थ कर्मचारी और चपरासी का कप ग्लास अलग अलग हीं रखे होते हैं और किसी को ऐतराज़ नहीं होता। जाति व्यवस्था में असन्तोष पनपा है और इसका फ़ायदा विधर्मियों ने उठाया है। अगर आपने हर हाथ को रोजगार और हर पेट को रोटी की बात सोची तो आपको वर्ण या जाति व्यवस्था की ओर हीं लौटना पड़ेगा क्योंकि शिक्षा की मशीन से निकले शिक्षितों की संख्या और सरकार द्वारा उत्पादित रोजगार के अवसरों में व्युक्रमानुपाती संबन्ध है। इस पर पाठक गण चिन्तन करें यही लेखन का उद्देश्य है।
Kundenbewertungen
Vaishya, Kshatriya, Varn Vyawasthaa, Shoodra, Cast, Jaati, Brahman